जोधपुर। संत निपुण चंद्र सागर ने कहा कि संसार में मोह रूपी नाग एवं राग रूपी आग ही आग है। उन्होंने कहा संसार में ठाकर बनना आसान है। परंतु परमात्मा का चाकर बनना बहुत मुश्किल है। हमें केवल संसार अच्छा लगता है। इसे छोड़ने का मन ही नही होता। जिस दिन स्वयं के भीतर से अनुभूति होगी कि संसार असार है। तभी हमें संसार से विरक्ति हो सकती है। उन्होंने कहा कि संयम का मार्ग ही जगत का सर्वोत्तम मार्ग है। धर्म के संस्कार के साथ संयम के संस्कार भी जन्म से ही मिलने आवश्यक है। समकित की प्रप्ति हेतु निर्वेग भाव को जागृत करना होगा। ट्रस्ट के प्रवक्ता दिलीप जैन एवं उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मुहता ने बताया कि संघ में 50 से अधिक आराधकों के सामूहिक तप की आराधना निर्बाध रूप से चल रही है। धर्म सभा का संचालन संजय मेहता ने किया।