ये विचार श्री दुबे ने आज होटल द प्रेसिडेंट के सभागार में आयोजित डॉ मदन डागा ट्रस्ट की ओर से आयोजित मदन डागा स्मृति व्याख्यान में व्यक्त किए। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि देश और समाज इस समय मीडिया, राजनीति और औद्योगिक घरानों के त्रिकोण ने फंसा है।लोकतंत्र के मूल सत्व को क्षति पहुंचाने की गंभीर कोशिशें लगातार जारी हैं। उन्होंने कहा कि देश और समाज अत्यंत विकेट दौर से गुजर रहा है।मतदाता को लाभार्थी के रूप में परिभाषित कर उसे उसके मूल कर्तव्य बोध से भटकाया जा रहा है।अतः नागरिकों को अपने नागरिकबोध के साथ जागृत रहते हुए लोकतंत्र के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। इससे पहले डॉक्टर मदन डागा स्मृति ट्रस्ट की ओर से आयोजित एक भव्य समारोह में प्रथम सावित्री मदन डागा पुरस्कार हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि कृष्ण कल्पित को उनकी चर्चित कृति हिंदनामा के लिए अर्पित किया गया। पुरस्कार की राशि 51000 है। पुरस्कार की निर्णायक समिति में हिंदी के मूर्धन्य कवि श्री अरुण कमल, नंदकिशोर आचार्य के साथ गहन गिल रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुई और फिर सभी मंचासित महानुभाव ने डॉ सावित्री मदन डागा की छवि पर पुष्पांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर ट्रस्ट की गतिविधियों का लेखा-जोखा डॉक्टर कविता डागा ने प्रस्तुत किया।उन्होंने बताया कि ट्रस्ट विगत .. … वर्षों से कार्यशील है।साहित्य भवन और संभावना के माध्यम से नियमित रूप से गतिविधियां संचालित की जा रही हैं।सावित्री मदन डागा पुरस्कार इसी कड़ी में किया जा रहा एक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है।
इसके पश्चात सूर्यनगरी में पहली बार पधारे हिंदी यशश्वी कवि श्री अरुण कमल ने अभय कुमार दुबे के साथ
श्री गोविंद माथुर द्वारा संपादित और राजकमल प्रकाशन की ओर से प्रकाशित स्व मदन डागा की चर्चित कृति यह कैसा मजाक है एवम अन्य कविताएँ के नवीनतम संस्करण का लोकार्पण भी किया गया।
इस अवसर पर श्री गोविंद माथुर , कवि संपादक ब्रजरतन जोशी, का सम्मान भी किया गया । श्री गोविंद माथुर ने अपने वक्तव्य में कहा कि सावित्री मदन डागा ने एक तीर्थ की भांति हमारी पीढ़ी को संस्कारित किया ।अपनी पीढ़ी के साथ समाज के वंचित वर्ग के हक़ के खातिर शासन के खिलाफ उनके प्रतिरोध का स्वर अनूठी ऊर्जा से भर देता है। आपातकाल में उनकी कविताएं तख्तियां पर नारों के रूप में पूरे देश में बेहद लोकप्रिय हुई।
इसी क्रम में कृष्ण कल्पित ने सम्मान को स्वीकार करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी पुरस्कार की साख इस पर निर्भर करती है कि वह किस व्यक्तित्व की स्मृति और किन निर्णायकों के निर्णय का सुफल है।उन्होंने कहा कि हमारे समय में जब देश दुनियां के सरकारी और निजी पुरस्कारों की साख दांव पर लगी है ,ऐसे में पारदर्शिता और साहित्यिक गुणवत्ता के साथ जिस भावना से ट्रस्ट कार्य कर रहा है वह बेहद प्रेरणास्पद है।
उन्होंने कहा कि यह तीनों निर्णायक मेरे कंधे पर लगे तीन सितारे हैं और मैं इस पुरस्कार को ग्रहण करते हुए स्वयं को बहुत प्रसन्न महसूस कर रहा हूं।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में श्री अभय कुमार दुबे का व्याख्यान आज का मीडिया और लोकतंत्र विषय पर हुआ।अपने व्याख्यान में श्री अभय दुबे ने विस्तार से लोकतंत्र में मीडिया की उपस्थिति और उनके अंतरसंबंधों पर विश्लेषणात्मक विचार रखते हुए कहा कि देश को आंकड़ों के मकड़जाल में उलझाया जा रहा है और मंडल और भूमंडल की राजनीति से प्रारंभ हुई नव उदारवादी व्यवस्था की विद्रूपताओं के चलते राडिया टेप प्रकरण ने देश और समाज के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि दरअसल देश को एक त्रिकोण चल रहा है शासन नहीं और वह त्रिकोण है पूंजीपति, राजनीतिज्ञ और देश के कुछ चुनिंदा बड़े और प्रभावशाली पत्रकार।
हम सब उनके हाथों की कठपुतलियां हैं।
ऐसे में जब लोकतंत्र का लोक इतने सारे खतरों से एकसाथ घिरा है, तब ऐसेसमय में एक सुविचारित, सजग और साहसी नागरिकता ही देश और समाज को दिशा दे सकती है।जिस पर समेकित ढंग से विचार किया जाना आवश्यक है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कवि श्री अरुण कमल ने कहा कि देश और समाज में मीडिया और शासन की विद्रूपताएं निश्चित रूप से हमारे लिए एक दुर्घटना है। जिससे देश और समाज आहत भी है, पर उन्होंने बेंगलुरु की महिलाओं द्वारा किए गए आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि किसी भी सत्ता को समाज के किसी भी वर्ग से अगर सही समय पर सशक्त और उचित चुनौती मिलती है, तो सत्ता को उसके सामने नतमस्तक होना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि आज सर्वहारा शब्द विमर्श से गायब है, लेकिन देश और समाज को यह सोचना होगा कि विचार करने वाले लोग केवल पूंजीपति, मीडिया या बौद्धिक वर्ग ही नहीं है बल्कि सर्वहारा वर्ग भी विचार करता है और जब वह विचार करता है, तो तय मानिए कि समाज की प्रगतिशीलता उससे उर्जा पाती है और देश और समाज क्रांति के जरिए आगे बढ़ते हुए सुखद और सकारात्मक परिवर्तनों का वाहक बनता है।कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार श्री हरीदास व्यास ने किया और आगुंतकों का आभार प्रो कौशलनाथ उपाध्याय ने व्यक्त किया