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Thursday, December 26, 2024

निर्दोष संत श्री आशाराम जी बापू, पिछले दस वर्ष से चंद स्वार्थी लोगों के कारण जेल में

आज की इस सभा का उद्देश्य यह है की समाज को याद दिलाया जाए की एक निर्दोष संत श्री आशाराम जी बापू, पिछले दस वर्ष से चंद स्वार्थी लोगों के कारण जेल में है। साल 2013 में गिरफ्तारी होने के बाद से उन्हें एक दिन की पेरोल भी नही मिली है। आज भारत वर्ष में चीफ मिनिस्टर और प्रधानमंत्री के हत्यारों को पेरोल मिल सकती है, सजा भी माफ हो सकती है परंतु एक 86 वर्ष के हिन्दू सन्त को न्याय देने का सामर्थ्य इनमें नही है। आशाराम जी बापू हिन्दुओ के नही पूरे भारत के सर्वोच्च संत है और उन्होंने अपने जीवन के 50 वर्ष देश व समाज के उत्थान में स्मार्पित किये है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट की माने तो आज भी बापू जी के शिष्यों की संख्या कम नहीं हुई है। फिर ऐसा क्यों है की ये व्योवृद्ध संत आज भी एक झूठे केस के शिकार है और इनके शिष्य सो रहे है? क्यों समाज आज इस अत्याचार पर सो रहा है? बापू जी ने ऋषियो की परंपरा के गुरुकुल बच्चो के लिए खोले। महिलाओं के रोजगार और स्वालंबी बनाने के लिए महिला उत्थान आश्रम । युवाओं के लिए मुफ्त नशा मुक्ति अभियान, मुफ्त नेत्र चिकित्सा कैम्प । प्राकृतिक आपदा आने पर उनकी संस्था सदा सबसे आगे बढ़कर सेवा करती है। गरीब आदिवासियो के लिए मकान और घर की व्यवस्था, बापू जी ने समाज के शोषित को पोषित किया पर वह संत आज अपने कुछ निकट के शिष्यों के कारण जेल में है । आज संत आशाराम बापू जेल में नहीं है बल्कि समाज में बहने वाली ज्ञान कि धारा जेल में है। दिनांक 21-08-2023 को जोधपुर जेल में 86 वर्षीय आशारामजी बापू जेल के बाथरूम में फिसल के गिर गए। उनका रक्त बहा और गहरी चोट लगी। परंतु उन्हें अस्तपताल नहीं ले जाया गया। बल्कि एक झूठा मैसेज उनकी संस्था के ऑफिशियल चैनल से जरूर आ गया की बापू टहलते हुए गिरे है। दिनांक 24-08-2023 को जोधपुर कमिश्नर का लेटर सोशल मीडिया पर वायरल होता है जिसमे आशारामजी बापू की पेरोल रिजेक्ट कर दी जाती है। कारण दिया जाता है: 1. बंदी को रिहा करने से पीड़ित परिवार को खतरा है। पिछले दस वर्ष से बापू जी जेल में है और पीड़ित परिवार के किसी भी सदस्य पर हमला या मृत्यु नहीं हुई है। आशाराम बापू जी का पूरा जीवन संतत्व का रहा है। इस केस से पहले संत श्री पर कोई आपराधिक मामला नहीं है। 2. जोधपुर कमिश्नर के अनुसार 86 वर्ष के बापू जी का जेल में उचित इलाज हो रहा है। हमारे पास कागज है जो प्रमाणित करते है की जेल जाने से पूर्व बापू जी को हार्ट की, किडनी की रीढ़ की हड्डी की प्रोस्टेट संबंधी कोई बीमारी नहीं थी और ये सब बीमारिया उन्हें जेल के प्रवास के दौरान मिली है। आज जेल में इलाज के बाद भी उनका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा है। बापू जी को अच्छे उपचार और खुले वातावरण की आवश्यता है पर जोधपुर के कमिश्नर इस से सहमत नहीं है। 3. जोधपुर कमिश्नर के अनुसार बापू जी के बाहर आने से कानून व्यवस्था पर असर पड़ेगा। यदि सशर्त पेरोल इलाज के लिए दी जाती तो ऐसा कुछ नहीं होगा। बापू के साधको ने सदा ही संयम से काम लिया है। वे तो इतने संयमी है की दस वर्ष से शांत ही बैठे है। दिया है की बापू जी पेरोल पर आने से 4. सबसे हास्यपद फरार हो सकते है। जोधपुर कमिश्नर शायद बापू जी की महानता से परिचित नहीं है और संत श्री आशाराम जी बापू का मूल्याकन अपने स्तर पर कर रहे है। यह पंक्ति पेरोल रिजेक्ट करने के कारण में जोड़ने से उन्होंने अपने स्तर का परिचय दिया है। 5 अंतिम कारण जोधपुर कमिश्नर द्वारा लिखा गया है की एप्लिकेशन जो पता है उस पर बापू जी के परिवार का कोई सदस्य नही रहता। ये एक जायज शिकायत है क्यूंकि शायद कमिश्नर साहेब तक को नहीं पता लगा कि कारण ये गया मैया जी को आश्रम में रह रहे गद्दार कब के निकाल चुके है। अब जोधपुर कमिश्नर से दो सवाल : यदि जेल में अच्छा उपचार हो रहा था तो गिरने के बाद बापू को X-Ray के लिए क्यों नहीं ले जाया गया क्या संत श्री आशाराम बापू कोई आतंकवादी है जो 86 वर्ष की अवस्था में बीमार हालत में पीड़िता के परिवार को मौत के घाट उतार देंगें? संत श्री आशाराम जी बापू बीमार है 86 वर्ष की आयु में और अत्यधिक बीमारी की अवस्था में फरार कैसे होंगे? भारत वर्ष में राजीव गांधी के हत्यारों को शादी में शामिल होने के लिए पेरोल दी गई, फाँसी माफ कर दी गई पर जोधपुर कमिश्नर को पुलिस पर इतना भरोसा नहीं है की आशाराम बापू को पेरोल दे सके ? जोधपुर कमिश्नर साहेब के बहानों से शिकायत नहीं है क्यूँकि हम जानते है की संत श्री आशाराम जी बापू पैरोकार ही गद्दार है। जब बापूजी के बीमारी के कागज नहीं लगाए जायेंगे तो उन्हें उपचार या पेरोल के लिए कैसे भेजा जायेगा? कैसे कानून की लड़ाई में जीता जाए जब पैरोकार ही गद्दार है। अंतिम बात आज मैं सभी से कहना चाहता हूं कि असूलो पर जहाँ आँच आये तो टकराना जरूरी है, जो जिंदा हैं तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है. डी. एन. सिंह ने कहा कि संत श्री आसाराम जी बापू एक राजनीति षडयंत्र के तहत, साजिश करके, फंसाकर एक राजनैतिक कैदी बना दिए गए हैं। देश के कुछ तथाकथित विख्यात राजनेता से नैतिक मूल्यों पर करने पर इन राजनेताओं ने द्वेष और बदले की भावना से, बदले की नीति के तहत संत श्रीआसाराम बापू के खिलाफ एक बहुत बड़ी साजिश को अंजाम दिया है। अपने गंदे मंसूबों को अंजाम देने के लिए इन राजनेताओं ने आशाराम जी बापू की संस्था के कुछ प्रमुख संचालकों और निकटवर्ती शिष्यों को अपने अधीन करके इस षडयंत्र को पूर्ण अंजाम दिया है। इन्हीं कुछ संचालकों और निकट के शिष्यों ने बापू के प्रति बैर रखने वाले कुछ अंदर के लोगों का इस्तेमाल संत श्री आसाराम जी बापू के विरुद्ध ऐसे फर्जी केस की नींव रखने में उपयोग किया है। इसी संदर्भ में अभियोजक पक्ष को मोहरा बनाकर बापू के खिलाफ खड़ा किया गया। हकीकत में स्थिति यह है कि अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष दोनों तरफ एक ही दल के लोग कार्य कर रहे हैं जो आशारामजी बापू को बाहर नहीं आने देना चाहते। और यह सभी लोग एक कठपुतली की तरह उन राजनेताओं के इशारे पर नाच रहे हैं जो रंजिश एवं बदले की भावना से बहुत पहले से ही एक मौके की तलाश में अलग-अलग साजिश रच रहे थे। फिर चाहे वह गुरुकुल के दो बच्चों के डूबने का मामला हो , या संस्था में तोड़फोड़ का मामला हो, या हेलीकॉप्टर क्रॅश का मामला हो, या सोमनाथ में सत्संग न होने देने का मामला हो, ऐसी कई साजिशो एवं षडयंत्रो का इन राजनेताओं के इशारे पर आश्रम के ही संचालकों द्वारा समय समय पर अंजाम दिया जा रहा था। जोधपुर केस में लड़की के माता-पिता करमवीर और सुनीता यूपी में शाहजाहपुर आश्रम के ही संचालक थे। धन के लालच में अपने अन्य कई साथियों सहित 2008 से 2013 तक कई बार बापूजी को बदनाम करने की कोशिश करी, यहाँ तक की बापू जी को धमकी देना, ब्लैकमेल के प्रयास करना और हर बार पकड़े जाने पर दयालु बापूजी ने उन्हें माफ किया है। जैसा सब जानते हैं बिच्छू तो बिच्छू ही होता है डंक मारना उसका स्वभाव होता है और अंत में बेशर्म बाप करमवीर ने पैसे की लालच में अपनी ही बेटी को मोहरा बनाया और एक निर्दोष संत को आज कानून की विशेष पोक्सो धारा का दुरुपयोग करके बिना सबूत के ” कारागार जाना पड़ा । यह दुनिया का अपने आप में एक ही ऐसा केस हैं, जिसमें इल्जाम लगाने वाला और दो प्रमुख गवाह एक ही परिवार के लोग है। पोक्सो का कानून मात्र संत श्री आशारामजी बापू से बदला लेने के लिए बनाया गया था, राजनीतिक गलियारों में यह सत्य सब को पता है। इसी लिए भाजपा के ब्रजभूषण सिंह पर पोस्को चार्ज लगा तो बिलबिलाकर उन्होंने इस द्वेषी कानून की सच्चाई मीडिया के आगे बोली- की ये कानून तो आशाराम बापू को फसाने के लिए बनाया गया था। संत आसाराम जी बापू एक फर्जी केस में पिछले 10 साल से कैद है, एक राजनीतिक कैद में है यह इसी बात से और साबित हो जाता है कि 10 वर्षों में तकरीबन 40 बार बेल के रूप में पैरोल के रूप में मेडिकल के रूप में उन्हें कानून में निर्धारित, संविधान निर्धारित उनके हक को बार-बार रद्द किया गया। सरकार और आश्रम मैनेजमेंट के बीच समझौता अगर कोई भी 10 साल का मूल्यांकन करे तो साफ हो जाता है कि सरकार में विद्यमान कुछ लोग और आश्रम मैनेजमेंट के बीच एक गहरी सांठगांठ बनी हुई है उसी के तहत यह सारा खेल खेला जा रहा है। साधकों की शक्ति को तितर-बितर करना यह बात भलीभांति सरकार भी जानती थी और मैनेजमेंट के लोग भी जानते थे अगर साधक एक हो गए तो फिर षडयंत्रकारियों की कोई दाल, कोई चाल नहीं चलेगी, इसी बात का अगर आप पिछले 10 साल का मूल्यांकन करके देखो, तो साधकों को एक होने ही नहीं दिया गया, जब भी कोई साधको को एकजुट करने की कोशिश करता तो उसे साम दाम दंड भेद से किनारे कर दिया जाता। वर्तमान में स्थिति यह है की पैरोल की याचिका खारिज हो चुकी है यह हम साधको के बहुत ही शर्म की बात है कि हम ऐसे नकारा शिष्य है की अपने गुरु के लिए आज तक एक जन आंदोलन नही कर पाये। विधर्मियों ने, षडयंत्रकारियो ने साजिशकर्ताओं ने छल कपट से हमारे गुरुदेव को बंदी बना लिया है, हम सब साधक अपने निजी बैर भाव को छोड़कर, पूरे एकजुट बापू को लाने का प्रयास करें।

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