26.1 C
New York
Sunday, April 20, 2025

देश में एक फीसदी से भी कम हैं ऐसे मानसिक रोगी जो खुद बताते हैं अपनी परेशानीआईआईटी जोधपुर के ताजा अध्ययन में सामने आई जानकारी

जोधपुर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर के एक ताज़ा अध्ययन से यह पता चला है कि देश में मानसिक बीमारियों के जूझ रहे कई लोग ऐसे हैं जो अपनी बीमारी के बारे में बताने से कतराते हैं। अध्ययन के मुताबिक ऐसे मानसिक रोगियों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है जो खुद से अपनी परेशानी बताते हैं और अपने इलाज के लिए आगे आते हैं। इस अध्ययन को करने के लिए नेशनल सैंपल सर्वे 2017-2018 के 75वें राउंड से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया था। ये सर्वे पूरी तरह से लोगों की सेल्फ रिपोर्टिंग पर आधारित था। सर्वे के लिए कुल 5,55,115 व्यक्तियों के आंकड़े इक_ा किए गए जिनमें से 3,25,232 लोग ग्रामीण क्षेत्र से और 2,29,232 लोग शहरी क्षेत्र से थे। सर्वे के लिए प्रतिभागियों का चयन रैंडम तरीके से 8,077 गांवों और 6,181 शहरी क्षेत्रों से किया गया था जहां मानसिक बीमारियों से जुड़े 283 मरीज़ ओपीडी में थे और 374 मरीज़ अस्पताल में भर्ती थे। ये अध्ययन मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए किए गये खर्च पर भी रोशनी डालता है। अध्ययन के मुताबिक उच्च आय वर्ग वाले व्यक्ति, कम आय वर्ग वाले लोगों की तुलना में स्वास्थ्य समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए 1.73 गुना ज़्यादा इच्छुक थे। यह अध्ययन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेंटल हेल्थ सिस्टम्स में प्रकाशित हुआ है। इसे आईआईटी जोधपुर के स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स में सहायक प्रोफेसर डॉ. आलोक रंजन और स्कूल ऑफ हेल्थ एंड रिहैबिलिटेशन साइंसेज ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी कोलंबस संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉ. ज्वेल क्रेस्टा ने मिलकर किया है।अध्ययन से पता चला हैं कि देश में मौजूद कुल मानसिक रोगियों में ऐसे रोगियों की संख्या काफी कम है जो खुद से बीमारी की रिपोर्टिंग के लिए आगे आते हैं। यह असमानता मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों की पहचान करने और उनका समाधान खोजने की दिशा में एक बड़े अंतर की ओर इशारा करती है। शोध ने एक सामाजिक-आर्थिक विभाजन को उजागर किया, जिसमें भारत में सबसे गरीब लोगों की तुलना में सबसे अमीर आय वर्ग की आबादी में मानसिक विकारों की स्व-रिपोर्टिंग 1.73 गुना अधिक थी।  मानसिक विकारों के लिए अस्पताल में भर्ती केवल 23 प्रतिशत व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य बीमा कवरेज था। अध्ययन से पता चला हैं कि अस्पताल में भर्ती और ओपीडी दोनों के लिए खर्च निजी क्षेत्र के अस्पतालों में सार्वजनिक क्षेत्र अस्पतालों की तुलना में कहीं ज़्यादा था।मानसिक रोगियों में सेल्फ रिपोर्टिंग को लेकर झिझक के बारे में आईआईटी जोधपुर के स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स (एसओएलए) के सहायक प्रोफेसर डॉ. आलोक रंजन ने बताया कि हमारे समाज में अभी भी मानसिक बीमारी से जुड़े मुद्दों पर बात करने में या इसका इलाज करवाने को लेकर लोग झिझकते हैं। मानसिक रोगों से पीडि़त लोगों को ऐसा लगता है कि अगर उनकी बीमारी के बारे में सबको पता चल गया तो समाज में लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे। इसीलिये हमें समाज में ऐसा माहौल बनाना होगा कि मानसिक बीमारियों से पीडि़त लोग बिना किसी झिझक के अपनी बीमारी के बारे में बात कर सके और इलाज के लिए आगे आ सकें।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Follow Me

16,500FansLike
5,448FollowersFollow
1,080SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

Hide Ads for Premium Members by Subscribing
Hide Ads for Premium Members. Hide Ads for Premium Members by clicking on subscribe button.
Subscribe Now