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Tuesday, December 24, 2024

हिंदी गीतकारों की रचनाओं ने सिनेमा को साहित्य से समृद्ध किया: शर्मा

जोधपुर। सवाक हिंदी फिल्मों के चलन के बाद अनेक गीतकारों और शायरों ने अपनी प्रतिभा से हिंदी सिनेमा को साहित्य से सम्पन्न किया। यह अलग बात है कि लंबे समय तक इन रचनाओं को महज इसलिए साहित्य नहीं माना गया क्योंकि फि़ल्मों में प्रयुक्त थी जबकि यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि अनेक फिल्मों की लोकप्रियता का मुख्य कारण इसके गीत थे जो आम लोगों की जुबान पर चढ़ चुके थे। यह कथन वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार तेजेन्द्र शर्मा ने सृजना के कार्यक्रम में अपने पावर पॉइंट प्रोग्राम को पर्दे पर प्रस्तुत करते हुए कही।उन्होंने हिंदी सिनेमा में साहित्य विषय पर अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि शैलेन्द्र जैसे प्रतिभाशाली कवियों ने अपने गीतों से सिनेमा को साहित्यिक रूप से सम्पन्न किया। राजकपूर और शैलेन्द्र की जोड़ी ने हिंदी फिल्मों को कलात्मक और अविस्मरणीय बना दिया। शर्मा ने बताया कि मजरूह, साहिर, हसरत वैरागी, शकील बदायूंनी जैसे शायरों ने अपनी भाषा को फिल्मों के अनुरूप और संप्रेषणीय बना कर अपनी कला का अद्भुत परिचय दिया। भरत व्यास, नीरज, योगेश, राजेन्द्र कृष्ण जैसे गीतकारों के गीतों के मुखड़े लोगों की जुबान पर चढ़े रहते थे। राजेन्द्र कृष्ण तो ऐसे प्रतिभाशाली गीतकार थे जो गीतों के अतिरिक्त फि़ल्म में संवाद लेखन, स्क्रिप्ट रायटिंग जैसे अनेक कार्य कर लेते थे। इन गीतकारों ने भाषा के स्तर पर अनेक प्रयोग किये। अनेक गीतों में क्षेत्रीय शब्दों का प्रयोग कर उन्हें लोक के मानस में रचा-बसा दिया। तेजेन्द्र शर्मा ने अपने प्रजेंटेशन के दरमियाँ नैन सों नैन नाहीं मिलाओ, तू जहां-जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा, मन रे तू काहे ना धीर धरे, संसार से भागे फिरते हो, तूं चंदा मैं चांदनी, तूं तरुवर मैं छांव रे, धंधे की कुछ बात करो कुछ पैसे जोड़ो, ज्योति कलश छलके, झनक-झनक तोरी बाजे पायलिया, जहां डाल-डाल पर सोने की चिडिय़ा करती है बसेरा, सपन झरे फूल से, ऐ भाई जरा देख के चलो जैसे अनेक सदाबहार गीतों की स्लाइड्स भी पेश कीं।कार्यक्रम में पहले सुषमा चौहान का हाल में प्रकाशित उपन्यास पंख खोलती डायरी और रचनाकार प्रगति गुप्ता पर केंद्रित जबलपुर की पत्रिका राग भोपाली पत्रिका- अंक का मंचस्थ अतिथियों ने लोकार्पण किया। डॉ हरीदास व्यास ने प्रगति गुप्ता के साहित्यिक अवदान को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रगति एक स्वाभाविक कथाकार हैं। आयोजन में अतिथियों का स्वागत डॉ कालूराम परिहार ने और संचालन संजय व्यास ने किया।

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