जोधपुर। गुप्त नवरात्रि के उपलक्ष्य में रातानाडा शिव मंदिर में संगीतमय नानी बाई का मायरा कथा शुरू हो गई है। कथा के शुभारंभ पर भगवान शंकर, राधाकृष्ण व व्यास पीठ की विधि-विधान से पूजा अर्चना की गई।
कथा वाचक दिव्या उज्जैन ने कहा कि हमारी मातृ भूमि संतों और मंदिरों की भूमि है। यहां पर महात्मा और संतों का जन्म हुआ है। उन्होंने अपने भक्ति भाव से न केवल ईश्वर की प्राप्ति की है बल्कि दूसरों का जीवन भी प्रकाश से भरा है। नरसी मेहता ऐसे ही एक महान भक्त थे। नरसी मेहता को साधुओं की सेवा करने में बड़ा आनन्द आता था उन्हीं साधुओं की सेवा करते करते नरसीजी ने भी सत्संग में भगवान की भक्ति शुरू कर दी। भाभी द्वारा अपमानित करने पर उन्होंने अपने घर का ही त्याग कर दिया तथा वह गिर पर्वत के घने जंगल में कहीं चले गये। वहां उन्हें एक शिवालय दिखाई दिया। नरसीजी वहीं रहने लगे और शिव की आराधना में लीन हो गए। फिर सात दिनों बाद स्वयं भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि जो तुम्हारी इच्छा हो वो वरदान मांग लो। नरसी मेहता ने कहा वह भक्ति किसी भी प्रकार के फल की कामना में नहीं की थी इसलिये जो आपकी इच्छा हो वो मुझे दे दीजिये। उनके इस वचन से प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हें गौलोक ले गए। गौलोक में भगवान कृष्ण गोपियों के संग रासलीला रचा रहे थे। ऐसा मनमोहित दृश्य देखकर नरसी मेहता उसी में खोकर रह गए। वह इस दृष्य को बिना पलकें झपकाए देखते रह गये और भक्ति रस में लीन हो गये। तब ही भगवान कृष्ण ने नरसी जी की ओर देखा और उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान किया और कहा जैसे भक्ति रास में तुम डूबे हो वैसे ही रसपान का आनन्द सारे जगत को कराओ। नरसी जी ने इसे ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और पृथ्वी पर जगह जगह कृष्ण भजन गाते हुए मग्न रहने लगे। प्रसंग के दौरान मंजू डागा और विकास वैष्णव ने भजनों की मनमोहक प्रस्तुति दी।