जोधपुर। आषाढ़ सुदी गुप्त नवरात्रि के उपलक्ष्य में रातानाडा स्थित शिव मंदिर में रातानाडा महिला एवं भक्त मंडल की ओर से आयोजित नानी बाई का मायरा कथा के तीसरे दिन कथा वाचक दिव्या उज्जैन ने मीरा चरित्र का प्रसंग सुनाया।
उन्होंने कथा का सार बताते हुए मनुष्य जीवन को अनमोल बताया एवं इसका सदुपयोग तथा भगवान का भजन करने से जीवन का कल्याण होने की बात कही। कथा वाचक ने बताया कि मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित था। मीराबाई के बालमन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि किशोरावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। इंसान आमतौर पर शरीर, मन और बहुत सारी भावनाओं से बना है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग अपने शरीर, मन और भावनाओं को समर्पित किए बिना किसी चीज के प्रति खुद को समर्पित नहीं कर सकते। विवाह का मतलब यही है कि आप एक इंसान के लिए अपनी हर चीज समर्पित कर दें, अपना शरीर, अपना मन और अपनी भावनाएं। कुछ लोगों के लिए यह समर्पण, शरीर, मन और भावनाओं के परे, एक ऐसे धरातल पर पहुंच गया, जो बिलकुल अलग था, जहां यह उनके लिए परम सत्य बन गया था। ऐसे लोगों में से एक मीराबाई थीं, जो कृष्ण को अपना पति मानती थीं। कृष्ण को लेकर मीरा इतनी दीवानी थीं कि महज आठ साल की उम्र में मन ही मन उन्होंने कृष्ण से विवाह कर लिया। उनके भावों की तीव्रता इतनी गहन थी कि कृष्ण उनके लिए सच्चाई बन गए। यह मीरा के लिए कोई मतिभ्रम नहीं था, यह एक सच्चाई थी। प्रसंग के दौरान मंदिर की वयोवृद्ध सेविका नारायणी देवी ने मीरा भक्ति से ओत-प्रोत भजन सुनाया तो भाव नृतिका श्यामा गोस्वामी व नन्ही बालिका जिया गोयल के साथ श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर झूमने लगे।