जोधपुर, 18 अगस्त। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ महाराज ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए वेश का परिवर्तन करके संत बनना सरल होता है, पर स्वभाव सुधारकर संत बनना जीवन की महान साधना है। केवल ड्रेस और एड्रेस बदलने से व्यक्ति को साधना का निर्मल परिणाम नहीं मिल सकता जब तक की वह अपना नेचर नहीं बदल लेता। दियासलाई दूसरों को जलाने के लिए जलती है पर दूसरा जले या न जले पर खुद को तो जलना ही पड़ता है। ऐसे ही हमारा क्रोध और कषाय है जो दूसरों के बजाय हमें ज्यादा दुखी करता है। क्रोध आदमी करता भी खुद है और दुखी भी खुद होता है। ऐसा नहीं है कि क्रोध करने से आदमी नरक में जाता है और प्रेम और क्षमा से स्वर्ग में जाता है। सच्चाई तो यह है कि जब हम क्रोध कर रहे होते हैं तो नरक में ही होते हैं और जब हम प्रेम और क्षमा में जी रहे होते हैं तब हम स्वर्ग में ही होते हैं। वे यहाँ गाँधी मैदान में आयोजित 57 दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला में कैसे करें क्रोध को हर हाल में कंट्रोल विषय पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कषाय से आत्मा का पतन होता है। हमारा अंतरमन उजाले के बजाय अंधेरे में जाता है। जैसे जानवर के गले में डोरी डालकर चाहे जिस दिशा में खींचा जा सकता है वैसे ही कषायों के पास में बंधा हुआ इंसान क्रोध, मान, माया में घिरा रहता है। हम ऐसी गाड़ी में चल रहे हैं जिसमें सब कुछ है पर ब्रेक नहीं है, हमारा स्वयं पर नियंत्रण नहीं है। हमें घर परिवार में दूसरों को सुधारने के लिए बहुत ज्यादा कषायों से नहीं घिरना चाहिए, वे सुधरे के न सुधरे पर हमारी आत्मा का पतन तो हो ही जाता है। क्रोध में तीव्र गति से हमारे कर्म का बंधन होता है। हमें हमेशा क्रोध को जीतने के लिए मुस्कान को तवज्जो देनी चाहिए। जैसे ट्रकों के पीछे लिखा रहता है – देखो मगर प्यार से, वैसे ही खुद को प्रेरित करना चाहिए गुस्सा करो मगर मुस्कुरा के। जैसे-जैसे मुस्कान बढ़ेगी वैसे-वैसे गुस्सा खत्म होगा। स्टूडियो में दो सेकंड मुस्कुराने से हमारा फोटो सुंदर आता है, अगर हम हर समय मुस्कुाएँगे तो हमारी जिंदगी कितनी सुन्दर हो जाएगी। संतप्रवर ने कहा कि जब क्रोध में किसी का अपमान कर रहे होते हैं तो उसका अपमान बाद में होता है पहले हम अपना सम्मान खो रहे होते हैं। हम अपनी दो तरह की सेल्फी लें- एक गुस्से का पॉज बनाकर और दूसरी मुस्कान का पॉज बनाकर और दोनों फोटो सबको भेजकर देख लें और उन्हीं को पूछ लें कि आपका कौनसा चेहरा सुन्दर लग रहा है। क्रोध किया और क्रोध का परिणाम देखा, प्रेम किया और प्रेम का भी परिणाम देखा और निष्कर्ष यही आया कि हमें क्रोध से बचना चाहिए और प्रेम में जीना चाहिए। दुनिया में साँवला चेहरा भी सुंदर लगता है अगर वो मुस्कुरा रहा हो और गोरा चेहरा भी अच्छा नहीं लगता है जिसमें मुँह चढ़ा हुआ हो। उन्होंने कहा कि स्वर्ग उनके लिए है जो अपने गुस्से को अपने काबू में रखते हैं और स्वर्ग उनके लिए जो गलती करने वालों को माफ कर दिया करते हैं, ईश्वर उनसे प्यार करते हैं जो दयालुु और करुणाशील होते हैं। हमें मिठाइयों से सीखना चाहिए – जलेबी में कितनी भी उलझने हों, पर स्वाद में रसीली होती है, रसगुल्ले को कितना भी निचोड लो वापस अपने आकार में आ जाता है। दबाव में आकर लड्डू बिखर जाता है और वापस एक होकर निखर जाता है। सोहन पपड़ी भले ही खाने में कम और गिफ्ट देने में ज्यादा काम आती हो पर दुखी नहीं होती वह मीठी की मीठी रहती है। हम इनसे सीखें कि विपरीत वातारण में भी मुस्कुराने का आनंद लिया जा सकता है। संतप्रवर ने कहा कि हमें अहंकार के कषाय से बाहर निकलना चाहिए। दुनिया में सब कुछ करना सरल है पर सरल होना मुश्किल है। सीधी लकड़ी पर तिरंगा लहराता है और टेढ़ी लकड़ी जलाने के काम आती है। हमें रूप, रंग, कुल, धन और जमीन-जायदाद का अहंकार नहीं करना चाहिए। ये आज हैं कल नहीं रहेंगे। मुँह में हमारे दाँत भी है और जीभ भी। नरम जीभ जन्म से आती है और मरते दम तक हमारे मुँह में रहती है। कड़क दाँत पीछे आते हैं और पहले निकल जाते हैं। हमें कभी सम्मान पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। सम्मान पाने से ज्यादा सम्मान देने में आनंद आता है जब भी हम किसी के ललाट पर चंदन का तिलक करते हैं,तो हमारे अंगूठे में खुशबू पहले आती है। किसी का सरल व्यवहार उसकी कमजोरी नहीं होती अपितु उत्तम संस्कार का परिणाम होता है। प्रवचन समारोह का शुभारम्भ श्री जयराम जी ट्रांसपोर्ट वाले, श्रीमती आशा कोठारी, इन्दौर, श्री सुरेन्द्र कुमार टांक, राजसमंद, सुश्री भावना टांक, सोमानी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. एम.एम. भट्टर, श्रीमती निर्मला भट्टर ने दीप प्रज्जवलन के साथ किया। इस अवसर पर प्रमुख समाजसेवी श्याम कुम्भट का संबोधि धाम द्वारा स्वागत किया गया। मंगल पाठ डॉ. मुनिश्री शान्तिप्रिय सागर जी ने किया। समारोह का संचालन संदीप मेहता ने किया। सोमवार को रक्षाबंधन पर गाँधी मैदान में श्रद्धालु बहनें 31 फीट की राखी संबोधि धाम ट्रस्ट मण्डल को समर्पित करेगी।