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Monday, April 7, 2025

मेरे मरने पर ठाना था जिसने मरना..साहित्य संगम की काव्य गोष्ठी में मौजूदा हालातों की विसंगतियों का शब्दांकन

जोधपुर। शहर की सबसे पुरानी साहित्यिक संस्था साहित्य संगम की ओर से शनिवार को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन सेठ श्री रघुनाथादास परिहार धर्मशाला के सभागार में किया गया। गोष्ठी में शहर के प्रतिष्ठित रचनाकारों ने मौजूदा हालातों की विसंगतियों एवं जीवन के विविध पहलुओं पर कविताएं प्रस्तुत की।गोष्ठी के प्रारंभ में संस्था के संस्थापक स्मृतिशेष मदन मोहन परिहार की लघु कविताओं की प्रस्तुति दी गई। गोष्ठी में नामवर शाइर हबीब कैफी ने गजल मेरे मरने पर ठाना था जिसने मरना, चेहरा उसका खिला मिला है दो दिन बाद, हिन्दी, उर्दू व राजस्थानी भाषा के सशक्त हस्ताक्षर बड़ों को देखकर के सीखना बच्चे की है आदत,  बड़ों के देखकर किरदार बच्चा टूट जाता है, कवि-आलोचक डॉ रमाकांत शर्मा ने बहुत मुश्किल होता है फूल की तरह खिलकर और मिल जाना पुराने दोस्त सरीखा, गीतकार दिनेश सिंदल ने गीत हम रातों के हाथ बिके हैं, दिन है सभी उधार के, सूरज बेच रहा उजियारा देखो डंडी मार के एवं कवयित्री पद्मजा शर्मा ने खामोशी भी एक शब्द है, अगर समझो-सुनो उसकी गूंज तो इत्यादि रचनाएं पेश कर समय के साथ बदलती इंसानी सोच एवं जीवन दर्शन को अभिव्यक्त किया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्यनारायण ने मृत्यु शृंखला पर सार्थ काव्य रचनाएं प्रस्तुत की।इसके अलावा गोष्ठी में नवीन पंछी ने मौत हो चुकी उस घर में तमाम रिश्तों की, पड़ौसी ने उसकी देहरी पर दीये जला दिए, सैयद मुनव्वर अली ने गजल समंदरों से लड़े तो उसे पता भी चले, लड़ाई करता है वो भी नदी से करता है, रंगकर्मी प्रमोद वैष्णव ने बेखौफ घूमने लगे हैं आजकल मुखौटे भी, पूर्णिमा जायसवाल अदा ने उजालों की दुनिया यही पर कहीं है, अंधेरा बहुत देर तक रहता नहीं है, अस्फाक फौजदार ने गैर के मोबाइल से भेजा मुझे एसएमएस, उन्हें कितना लुत्फ आता है मुझे सताने में, कुलदीप सिंह भाटी ने अपनी न सही अपने दुख की सुनो, सुशील एम. व्यास ने संवेदना एवं रजा मोहम्मद खान ने हदों को तोडक़र वो लोग जो आगे निकल गए इत्यादि रचानाएं प्रस्तुत कर खूब दाद बटोरी।

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