जोधपुर। साहित्यिक संस्था तहज़ीब द्वारा होटल सदर हवेली हेरिटेज में एक तरही शेरी-निशस्त (उर्दू काव्य गोष्ठी) का आयोजन किया गया जिसमें मिस्रए-तरह शरमा रही थी धूप भी चेहरों के रंग से.. पर सभी शाइऱों ने अपने-अपने ढंग से गज़़लों के रंग बिखेरे।सदारत करते हुए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शाइऱ व नक्क़़ाद शीन काफ़ निज़ाम साहिब ने आईना देख ले न कभी तू दरंग से, दुनिया बदल रही है तिरे रंग-ढंग से… तारीख़ के लिबास में तहज़ीब का तिलिस्म, कुछ-कुछ दिखाई दे रहा है दरियाए-गंग से.. मूसा की तरह जा के न कर कोह पर तलाश, हासिल वो आग होती है अंदर के संग से…जैसे खू़बसूरत अश्आर पेश कर निशस्त को बलन्दी बख़्शी। शीन मीम हनीफ़ ने मिट्टी में सो रहे हैं वो बे-नामो- नंग से रखते नहीं थे पांव जो नीचे पलंग से.. तथा डॉ. निसार राही ने गिरते है आस्मान से दोनों ज़मीन पर जब टूटता है डोर का रिश्ता पतंग से.. गज़़ल पेश कर दाद बटोरी। वहीं अफज़़ल जोधपुरी ने पल-पल संभालता है हमें कोई इस तरह जैसे कि कोई डोर बंधी हो पतंग से.. एवं डॉ. इश्राक़ुल इस्लाम माहिर ने अम्नो – अमां से लफ्ज़़ तो अब ख़्वाब हो गये ख़ुश होने लग गई है नई नस्ल जंग से… जैसे शेरों से खू़ब दाद पाई तो बृजेश अंबर ने रोते हुए भी लै में उसे गुनगुनाए जा, तालीम ये मिली है मुझे नै-ओ-चंग से.. अपनी रचना से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया। एम आई ज़ाहिर ने जमना किनारे आई दिवाली तो यूं हुआ, इक कहकशां-सी बन गई जगमग तरंग से.. और वसीम बैलिम ने वो आइना गरी के हुनर में मिसाल है जिसने बनाया है मुझे भी आब-रंग से.. आरंभ ही से समां बांध दिया। इस अवसर पर काव्य -पाठ से पूर्व जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी गु़लाम मुह़म्मद ख़ान, तहऱीर संस्था के सचिव मुह़म्मद नोमान शेरानी, इफ़्ितख़ारुद्दीन क़ाज़ी, तहज़ीब के सदस्य एडवोकेट तलअ़त बारी, मुह़म्मद यूनुस, डॉ. फुऱक़ान अली, ज़ाफिऱ पाशा, मुह़म्मद उ़मर, अहमद नूरी, नूरुद्दीन शेरानी, एडवोकेट सरदार ख़ान, रिज़वान अह़मद, तनवीर अह़मद, मोमिन माहिर ने शाइरों को सूत की माला पहना कर स्वागत किया और अंत में तहज़ीब के सचिव नफ़ासत अहमद ने आभार व्यक्त किया। संचालन डॉ. इश्राकुल इस्लाम माहिर ने किया।